Mathur Vaishya - Akhil
Bhartiye Mathur Vaishya Samaj India
About Mathurvaishay Samaj History :
इतिहासः सन १८८७ में ग्राम बाह , जिला आगरा उत्तरप्रदेश में आयोजित प्रतिनिधि सम्मेलन जिसकी अध्यक्षता शमसाबाद निवासी स्व. गणेशीलाल गुप्त ने की थी इन्हें ही वर्तमान महासभा का जन्मदाता कहा जा सकता है। आज कई सम्मेलनों और अधिवेशनो से प्राप्त अनुभव और परिपक्वता से परिपुष्ट महासभा पूर्ण आत्मविश्वास के साथ प्रगति पथ पर गतिमान है। देश व विदेश में बसा हुआ प्रत्येक माथुरवैश्य इसके विधान की परिधि मे है और दिन-प्रतिदिन माथुरवैश्य परिवार महासभा से जुड़ने में एक विशेष गौरव का अनुभव करते हैं।
स्वरूप : संगठन की दृष्ठि से महासभा माथुरवैश्य समाज की एकमात्र शिरोमणि संस्था है जा सम्पूण माथुरवैश्य समाज का प्रतिनिधित्व करती है। यह अब त्रिस्तरीय संगठन है जिसमें शीर्ष पर स्वंय महासभा है जो महासभाध्यक्ष के नेतृत्व में केन्द्रीय मंत्रिपरिषद् , महासभा कार्यसमिति एवं विभिन्न समितियों के माध्यम से अपनी गतिविधियों का संचालन करती है। संगठन को विस्तृत आधार प्रदान करने तथा स्थानीय इकाई एवं महासभा के मध्य एक सृदृढ कडी की भूमिका प्रतिपादन करने हेतु देशभर में मण्डलों का गठन किया है। स्थानीय इकाई के रूप में शाखा सभा व महिला मण्डल हैं और उनकी सहायतार्थ स्थानीय सेवादल हैं। वर्तमान में शाखा सभाएं , महिला मण्डल एवं सेवादल सारे देश में कार्यरत हैं।
सहयोगीसंगठन :
केन्द्रीयमहिलामण्डलः स्वसमाज के महिला वर्ग के उत्थान व विकासार्थ तथा समाज में उसे उचित सम्मान दिलाने की दृष्टि से महिलाओं का एक संगठन महासभा के अंतर्गत कार्यरत् है।
सेवादलः इसी प्रकार युवा वर्ग के उत्थान व विकास के लिए तथा महासभा की विभिन्न गतिविधियों के क्रियान्वयन हेतु महासभा का एक सेवादल संगठन है।
कार्यसम्पादनः महासभा के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए महासभा की कार्यसमिति , महासभा प्रतिनिधि सम्मेलन तथा महासभा अधिवेशन में समाज हित में जो भी प्रस्ताव पारित होते हैं उन्हें मंत्रिपरिषद् विभिन्न उपसमितियों व अपने सहयोगी संगठनों के माध्यम से कार्य रूप् में परिणित कराती है। समय-समय पर आयोजित मंत्रिपरिषद् समीक्षा करती है और यदि कोई गतिरोध है तो उसे दूर करने का प्रयत्न करती है।
About Mathurvaishay Samaj History :
इतिहासः सन १८८७ में ग्राम बाह , जिला आगरा उत्तरप्रदेश में आयोजित प्रतिनिधि सम्मेलन जिसकी अध्यक्षता शमसाबाद निवासी स्व. गणेशीलाल गुप्त ने की थी इन्हें ही वर्तमान महासभा का जन्मदाता कहा जा सकता है। आज कई सम्मेलनों और अधिवेशनो से प्राप्त अनुभव और परिपक्वता से परिपुष्ट महासभा पूर्ण आत्मविश्वास के साथ प्रगति पथ पर गतिमान है। देश व विदेश में बसा हुआ प्रत्येक माथुरवैश्य इसके विधान की परिधि मे है और दिन-प्रतिदिन माथुरवैश्य परिवार महासभा से जुड़ने में एक विशेष गौरव का अनुभव करते हैं।
स्वरूप : संगठन की दृष्ठि से महासभा माथुरवैश्य समाज की एकमात्र शिरोमणि संस्था है जा सम्पूण माथुरवैश्य समाज का प्रतिनिधित्व करती है। यह अब त्रिस्तरीय संगठन है जिसमें शीर्ष पर स्वंय महासभा है जो महासभाध्यक्ष के नेतृत्व में केन्द्रीय मंत्रिपरिषद् , महासभा कार्यसमिति एवं विभिन्न समितियों के माध्यम से अपनी गतिविधियों का संचालन करती है। संगठन को विस्तृत आधार प्रदान करने तथा स्थानीय इकाई एवं महासभा के मध्य एक सृदृढ कडी की भूमिका प्रतिपादन करने हेतु देशभर में मण्डलों का गठन किया है। स्थानीय इकाई के रूप में शाखा सभा व महिला मण्डल हैं और उनकी सहायतार्थ स्थानीय सेवादल हैं। वर्तमान में शाखा सभाएं , महिला मण्डल एवं सेवादल सारे देश में कार्यरत हैं।
सहयोगीसंगठन :
केन्द्रीयमहिलामण्डलः स्वसमाज के महिला वर्ग के उत्थान व विकासार्थ तथा समाज में उसे उचित सम्मान दिलाने की दृष्टि से महिलाओं का एक संगठन महासभा के अंतर्गत कार्यरत् है।
सेवादलः इसी प्रकार युवा वर्ग के उत्थान व विकास के लिए तथा महासभा की विभिन्न गतिविधियों के क्रियान्वयन हेतु महासभा का एक सेवादल संगठन है।
कार्यसम्पादनः महासभा के उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए महासभा की कार्यसमिति , महासभा प्रतिनिधि सम्मेलन तथा महासभा अधिवेशन में समाज हित में जो भी प्रस्ताव पारित होते हैं उन्हें मंत्रिपरिषद् विभिन्न उपसमितियों व अपने सहयोगी संगठनों के माध्यम से कार्य रूप् में परिणित कराती है। समय-समय पर आयोजित मंत्रिपरिषद् समीक्षा करती है और यदि कोई गतिरोध है तो उसे दूर करने का प्रयत्न करती है।
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